Mumbai Train Blast 2006:11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। इनमें इनमें वे पांच आरोपी भी हैं जिन्हें निचली कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट की विशेष पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। अदालत ने कहा कि गवाहों के बयान भरोसेमंद नहीं हैं और सबूतों की रिकवरी भी केस को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह फैसला करीब 19 साल बाद आया है। निचली कोर्ट ने 2015 में सजा सुनाई थी। इस केस में एक आरोपी की 2021 में कोविड से मौत हो चुकी है। हाईकोर्ट ने जुलाई 24 से इस मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की थी।
जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चंदक की विशेष पीठ ने कहा गवाहों के बयान विरोधाभासी हैं। उनमें विश्वसनीयता नहीं है। आतंकवाद निरोधी दस्ते ने कहा फैसले के विश्लेषण के बाद आगे कदम उठाएंगे। दोषियों को अमरावती नागपुर व पुणे की येरवडा सेंट्रल जेलों से बीडियो कॉनफ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया। इस मामले में निचली अदालत ने सितंबर 2015 में 12 लोगों को दोषी ठहराया था और उनमें से पांच को फांसी और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 11 जुलाई 2006 को शाम 6:24 से 8:35 के बीच मात्र 11 मिनट के अंतराल में 7 ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे। ये विस्फोट पश्चिम रेलवे की उपनगरीय लोकल ट्रेनों के प्रथम श्रेणी के डिब्बों में किए गए थे।
Mumbai Train Blast 2006: वो 12 सबूत जिनकी वजह से आरोपी निर्दोष साबित हुऐ है।
1. जब्त सामग्रियों का धमाके से लिंक नहीं
आरडीएक्सए डेटोनेटर कुकर सर्किट बोर्ड सोल्डरिंग गन किताबें और नक्शे जैसी मौके से जब्त चीजें घटना से जोड़ने में विफल रहे।
2. किस किस तरह के बम थे, ये नहीं बता पाए
यह भी नहीं बता पाए कि किस तरह का बम इस्तेमाल हुआ था।
जब्त करते समय चीजों को ठीक ढंग से सील भी नहीं किया गया था।
3.ड्राइवर की गवाही 100 दिन बाद ली गई
पहला गवाह एक टैक्सी चालक था जिसने कहा कि वह चर्चगेट स्टेशन
गया था। उसकी गवाही सौ दिन बाद ली वो भी विश्वनीय नहीं लगती।
4. सौ दिन आम चेहरा याद रखाना संभव नहीं
डाइवर के पास सौ दिन बाद भी आरोपी का चेहरा याद रखने का ठोस कारण नहीं था।
5.करीब तीन महीने तक चुप्पी क्यों साधी
अन्य गवाहो ने भी 100 से ज्यादा दिन चुप्पी के बाद बयान दर्ज कराए। इनसे स्पष्ट होता है कि 3 माह बाद भी सही पहचान कैसी कर ली?
6.बिना के अधिकार के शिनाख्त परेड कराई
वरिष्ठ जांच अधिकारी बर्वे ने 7 नवम्बर 2006 को शिनाख्त परेड करवाई थी पर उन्है ऐसी परेड कराने का कोई हक नही था।
7.परेड ही वैध नहीं इसलिए गवाही खारिज
शिनाख्त परेड वैध नहीं थी, इसलिए अदालत ने उस गवाह की गवाही
को भी खारिज कर दिया जिसने बम बनाने वाले को पहचाना था।
8.शिनाख्त परेड में गवाह ही गायब रहा
दोनों अभियुक्तों के रेखाचित्र बनाने में मदद करने वाले गवाह को शिनाख्त परेड में नहीं बुलाया। सुनवाई में भी वह गवाह गायब रहा।
9. आरोपी को के बवान से मुकरा
जिस गवाह ने कहा था कि आरोपी एक घर में बम बना रहा था। बाद में उसने बयान दिया
कि वह उस घर में दाखिल नहीं हुआ था।
10.जुर्म कबूलने के बयान भी खारिज हुए
अदालत ने आरोपियों के इकबालिया बयानों को भी खारिज किया। बयानों में बहुत
समानताएं पाई गई जो संदेह पैदा करता है।
11.बयान लेने से पूर्व मंजूरी भी नहीं ली गई
अदालत ने आरोपियों के बयान दर्ज करने से पहले अधिकारिक अनुमति लेने की प्रक्रिया पर भी कई सवाल उठाए थे।
12. जांच प्रणाली को लेकर सवाल उठाए
सरकार अभियुक्तों के विरुद्ध कोई ठोस
प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रही।
कोर्ट ने जांच की प्रक्रिया में कमी बताई।
डॉ. एस मुरलीधर वो वकील जिन्होने आरोपियों की पैरवी की उडीसा हाई कोर्ट मे मुख्य न्यायाधीश रह चुके है।
Mumbai Train Blast 2006: बॉम्बे हाई कोर्ट मे 2006 के बम विस्फोट मामले मे आरोपियो की ओर से लडने वाले डा. एस मुरलीधर 7 अगस्त से 2023 को उडीसा के के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत हो चुके है। 1984 मे मद्रास विश्वविधालय से कानुन की डिग्री प्रथम श्रेणी मे हासिल की थी पहली नियुक्ति दिल्ली हाई कोर्ट मे न्यायाधीश के रूप मे हुई थी। 29 मई 2006 से 5 मार्च 2020 तक वहां रहे थे। 2020 से 2021 के बीच पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट मे सेवा दी