ब्लैक बॉक्स: रहस्य, रंग और दुर्घटनाओं का सच
आपने अक्सर हवाई जहाज दुर्घटनाओं की खबरों में ‘ब्लैक बॉक्स’ का ज़िक्र सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस छोटे से उपकरण का नाम ‘ब्लैक बॉक्स’ क्यों पड़ा और यह विमानन सुरक्षा में इतनी अहम भूमिका क्यों निभाता है? आइए, ब्लैक बॉक्स से जुड़ी कुछ दिलचस्प और ज़रूरी बातें जानते हैं।
नाम का रहस्य: क्यों है ये ‘ब्लैक बॉक्स’?
ब्लैक बॉक्स के नाम को लेकर कई बातें प्रचलित हैं। एक मान्यता यह है कि पहले इसके अंदरूनी हिस्से काले होते थे, इसलिए इसे यह नाम मिला। हालांकि, एक और राय यह भी है कि विमान दुर्घटना के बाद आग से जलकर इसका रंग काला पड़ जाता है, जिस कारण इसे ‘ब्लैक बॉक्स’ कहा जाने लगा। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि असल में यह काले रंग का नहीं होता
कैसा दिखता है असली ‘ब्लैक बॉक्स’?
आपके मन में सवाल आ सकता है कि अगर यह काला नहीं होता, तो कैसा दिखता है? दरअसल, ब्लैक बॉक्स असल में नारंगी रंग का होता है! और यह किसी साधारण बॉक्स जैसा भी नहीं होता। यह कई अलग-अलग आकारों में हो सकता है, जैसे गोल, बेलनाकार, या गुंबद जैसा। इसका चमकीला नारंगी रंग इसे दुर्घटना स्थल पर, खासकर मलबे में, आसानी से ढूंढने में मदद करता है। इसका आकार भी ऐसा होता है कि यह आसानी से मिल जाए।
दो नहीं, एक ब्लैक बॉक्स? नहीं, दो होते हैं!
यह जानना भी ज़रूरी है कि ब्लैक बॉक्स असल में एक नहीं, बल्कि दो अलग-अलग उपकरण होते हैं जो विमान में लगे होते हैं। इनका मुख्य कार्य विमान की उड़ान से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी को रिकॉर्ड करना है। ये दो डिवाइस हैं:
- फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR): यह विमान के प्रदर्शन से संबंधित तकनीकी डेटा रिकॉर्ड करता है, जैसे गति, ऊंचाई, इंजन की स्थिति, उड़ान का कोण आदि।

- कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR): यह कॉकपिट के अंदर पायलटों और अन्य क्रू सदस्यों के बीच हुई बातचीत और अन्य ध्वनियों को रिकॉर्ड करता है।

हादसे के बाद कैसे होती है ब्लैक बॉक्स की खोज?
ब्लैक बॉक्स को ढूंढना एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है, खासकर जब विमान पानी में गिरा हो।
- पानी में दुर्घटना: यदि विमान पानी में गिरता है, तो ब्लैक बॉक्स का अंडरवाटर बीकन पानी के संपर्क में आते ही सिग्नल भेजना शुरू कर देता है। ये सिग्नल बचाव दल को इसकी लोकेशन तक पहुंचने में मदद करते हैं।
- जमीन पर दुर्घटना: ज़मीन पर हुए हादसे में, इसका चमकीला नारंगी रंग इसे ढूंढने में काफी मददगार होता है। बचाव दल मलबे में इसे ढूंढने के लिए विशेष उपकरणों का भी उपयोग करते हैं।
डेटा कैसे सुरक्षित रहता है?
ब्लैक बॉक्स को विमान के सबसे सुरक्षित हिस्से, आमतौर पर टेल सेक्शन (पूछ वाले हिस्से) में रखा जाता है। यह टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील जैसी बेहद मजबूत धातु से बना होता है। यह इतना मजबूत होता है कि 1100 डिग्री सेल्सियस के अत्यधिक तापमान को झेल सकता है और समुद्र की 14,000 फीट की गहराई से भी सिग्नल भेज सकता है। यह इसकी डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
ब्लैक बॉक्स मिलने में लग सकता है समय
दुर्भाग्यवश, कुछ हादसों में ब्लैक बॉक्स को ढूंढने में बहुत समय लग सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि यह कभी नहीं मिलता। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
- श्री विजया एयर जेट (09 जनवरी 2021): इसका ब्लैक बॉक्स करीब 3 दिन में मिल गया था।
- एयर फ्रांस 447 (1 जून 2009): इस विमान का ब्लैक बॉक्स 699 दिनों के बाद मिला था।
- मलेशिया एयरलाइंस 370 (8 मार्च 2014): इस विमान का ब्लैक बॉक्स आज तक नहीं मिला है।
भारत में कहां होती है ब्लैक बॉक्स की जांच?
भारत में भी अब ब्लैक बॉक्स से डेटा निकालने और उसका विश्लेषण करने की सुविधा उपलब्ध है। हाल ही में दिल्ली में DFDR (डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर) और CVR (कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर) लैब की शुरुआत हुई है। यहीं पर ब्लैक बॉक्स से प्राप्त डेटा की जांच और गहन विश्लेषण किया जाता है, जिससे दुर्घटनाओं के कारणों का पता लगाने में मदद मिलती है।
ब्लैक बॉक्स वास्तव में विमानन सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो दुर्घटनाओं के रहस्यों को उजागर करने और भविष्य की सुरक्षा में सुधार करने में मदद करता है।